Rivers in Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश की प्रमुख नदियाँ
Important For HPAS GS 3
Q. हिमाचल प्रदेश की प्रमुख नदियों के नाम बताइए और राज्य के भूगोल और संस्कृति के लिए उनके महत्व को संक्षेप में समझाइए।
भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है जहाँ पर नदियों का महत्व बहुत है। भारत वर्ष में विभाजन से पहले पंजाब के नामकरण में जिन पांच नदियों का योगदान रहा है उनमें सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब तथा झेलम के नाम शामिल हैं जो वैदिक काल में क्रमशः शुतुद्री, विपाशु, परुष्णी असिवनी तथा वितस्ता कहलाती थीं । इन पांचों के समूह को पंचनद कहा गया है। इन पांचों के साथ जब सरस्वती और सिंधु नदियां आ से जुड़ी तो इनका सामूहिक नाम ‘सप्तसिंधु’ कहलाया। सरस्वती जो अब लुप्त हो गई है, के बारे में यह भी कहना है कि यह प्रयाग के निकट गंगा, यमुना के साथ मिलती थी जो ‘त्रिवेणी’ कहलाता है। महाभारत में इन सब नदियों को देव नदियाँ कहा गया है।
हिमाचल प्रदेश में नदियों के साथ-साथ उपनदियां, सहायक नदियां और बारहमासा खड्डें बहती हैं, जो अन्ततः इन बड़ी नदियों में विलीन हो जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में असंख्य ही नदियां और नाले हैं। जिनमें सारा वर्ष अथाह जल राशि रहती है, परन्तु इनमें पांच नदियां ऐसी हैं जिनका सारे देश के भूगोल, संस्कृति और इतिहास से सम्बन्ध जुड़ा है।
हिमाचल प्रदेश में 5 प्रमुख नदियाँ बहती है जिनमे से 4 सिंधु नदी प्रणाली का हिस्सा है- ब्यास,सतलुज, रावी, और चंद्रभागा(चिनाब)। यमुना नदी और इसकी साहयक नदियाँ गंगा प्रणाली का हिस्सा है।
हिमाचल की 5 नदियों में से 3 हिमाचल प्रदेश से ही निकलती है- ब्यास, रावी, और चंद्रभाग।
सतलुज नदी (SATLUJ RIVER)
- उद्गम स्थान : तिब्बत स्थित मानसरोवर की झील के पास कैलाश पर्वत के दक्षिण में राक्सताल झील से।
- संस्कृत नाम : शतद्रु यानी “सैकड़ों धाराओं वाली”।
- वैदिक नाम : सुतुदि/ शतुद्रि।
- अन्य नाम : हिमालय से निकलने के कारण इसे ‘हेमवती‘ भी अथवा ‘हुफसिस‘, किन्नौर में लङछेन खंबा (हस्तिमुखी) ‘जुङ-ती’ (सुवर्णनद), मुकसङ, सोमोद्रङ (यानी समुद्र) के नाम से भी जानी जाती है। यूनानी में हिसिडास/ जरोदस, तिब्बत में लोग्चेन खाम्बाव कहा जाता है।
- प्रवेश : यह नदी हिमाचल में शिपकी (किन्नौर) से प्रवेश करती है। इसके बाद यह शिमला में चौहरा गांव, मंडी में फिरनू गांव, और बिलासपुर में कसोल गांव से प्रवेश करती है। सतलुज हिमाचल प्रदेश को भाखड़ा गांव में छोड़कर पंजाब (मैदानी क्षेत्र) में प्रवेश करती है। सतलुज नदी अंत में पाकिस्तान में सिंधु नदी में मिल जाती है।
- हिमाचल में लम्बाई : कुल लम्बाई -1448 किमी, हिमाचल में लम्बाई- 320 किमी।
- हिमाचल में जलग्रहण क्षेत्र : कुल जलग्रहण क्षेत्र- 50140 वर्ग किमी हिमाचल में जलग्रहण क्षेत्र- 20000 वर्ग किमी।
- इसके किनारे पे प्रमुख बस्तियाँ : नामगिया, रामपुर, कल्पा, ततापानी, सुनी, बिलासपुर।
सतलुज की सहायक नदियाँ (Tributaries)
- स्पिति : स्पीति घाटी की प्रसिद्ध स्पिति नदी कुंजुम श्रेणी से निकलती हुई लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा के बाद किन्नौर के नामगिया (खाब) स्थान में सतलुज नदी में मिल जाती है। इसकी सहायक नदियाँ है – तेगपो और कब्जियन धारा और पिन नदी।
- बस्पा : बस्पा नदी बस्पा पहाड़ियों से निकलकर करछम (कल्पा) के पास सतलुज नदी में मिलती है। इस नदी की लम्बाई लगभग 72 km है। “भावा” इसकी सहायक नदी है।
- इसके आलावा इसमें : नोगली खड्ड (यह रामपुर बुशहर में सतलुज में मिलती है) ,तिरुड खड्ड (मुरंग क्षेत्र में), रोपा खड्ड/श्यासों खड्ड, मुलगुन खडड़ ( स्थानीय लोग ‘कोयड्. गारङ’ भी कहते हैं), युल्ला खड्ड , मेलगर खड्ड, पनगर खड्ड नोटी खड्ड खोटी खड्ड अमला- विमला नदी इसकी सहायक है ।
Some Important Point about Satluj River
- सतलुज नदी को हिमाचल प्रदेश में लाने का श्रेय बाणासुर को जाता है। पौराणिक विवरण में उसे विरोचन का पौत्र और राजा बलि का पुत्र कहा गया है।
- सतलुज नदी का वर्णन ऋग्वेद में भी किया गया है।
- सतलुज नदी किन्नौर, शिमला, कुल्लू, मंडी, सोलन और बिलासपुर ज़िलों में से होकर गुजरती है।
- सतलुज को ग्रीक में ‘हुपनिस‘ अथवा ‘हुफसिस’ कहा गया है।
- सतलुज नदी को “रेड रिवर”, “ख़ूँनी नदी”, “लाल नदी” के नाम से भी जाना जाता है।
- हिमाचल की सबसे लम्बी और तेज गति से बहने वाली नदी सतलुज नदी है।
- समुद्र तल से सतलुज नदी की ऊंचाई 15200 फुट है।
- 5 नदियों के प्राकृतिक मिलन में ब्यास सतलुज में, जेहलम चिनाब में, चिनाब रवि में, रवि सतलुज में और सतलुज सिंधु में मिलती है जो अरब सागर में विलीन हो जाती है।
ब्यास नदी (BEAS RIVER)
- उद्गम स्थान : कुल्लू ज़िले के पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला से रोहतांग (अर्थ – लाशो के ढेर) के समीप ब्यासकुंड (समुन्द्रतल से 3978 मीटर) से निकलती है। ब्यास नदी के दो स्रोत हैं— ‘ ब्यास रिखी’ और ‘ ब्यास कुण्ड‘। ब्यास नदी का मूल स्रोत ‘ब्यास-रिखी‘ हैं।
- संस्कृत नाम : विपाशा।
- वैदिक नाम : आर्जिकिया।
- ग्रीक नाम : हाइफैसिस
- प्रवेश : यह नदी कुल्लू, मंडी, काँगड़ा, थोड़ा सा हमीपुर के साथ सीमा बनाती है। ब्यासकुंड से निकलकर कुल्लू में बहने के बाद यह बजौरा से मंडी में, संधोल से काँगड़ा में प्रवेश करती है। हमीरपुर जिलों की सीमाओं को यह हारसीपतन के पास छूती है। फिर काँगड़ा में बहने के बाद यह मीरथल नामक स्थान से पंजाब में प्रवेश करती है। ब्यास नदी, सतलुज नदी में पंजाब के फिजोरपुर ज़िले के हरि-का पटट्न में मिलती है।
- हिमाचल में लम्बाई : कुल लम्बाई – 460 किमी, हिमाचल में लम्बाई- 256 किमी।
- हिमाचल में जलग्रहण क्षेत्र : कुल जलग्रहण क्षेत्र – 20303 वर्ग किमी हिमाचल में जलग्रहण क्षेत्र – 12000 वर्ग किमी।
- इसके किनारे पे प्रमुख बस्तियाँ : मनाली, कुल्लू, बजौरा, पंडोह, मंडी, सुजानपूर टिहरा, नादौन और देहरा गोपीपुर।
ब्यास की सहायक नदियाँ (Tributaries)
- कुल्लू जिले में– पार्वती, पिन, मलाणा-नाला, सोलंग (स्रोत ब्यास कुण्ड है), मनालसू, फोजल और सर्वरी (कुल्लू नगर के पास इसमें मिलती है), सेंज नदी, तीर्थन नदी, पतलीकूहल, मनु नाला, रिखी नाला, राहड़ी नाला, करणी नाला, मलाणा नाला, हरला इसकी सहायक नदियां/खड्डें हैं।
- मण्डी जिले में – ऊहल, ज्यूणी, बिना, हंसा, तीर्थन, बाखली, सुकेती, पनोडी, बेकर, सोन, रणा, और बढेड़ आदि इसकी सहायक खड्डे हैं।
- हमीरपुर में कुणाह और मान खड्ड तथा कांगड़ा में बिनवा, न्यूगल, बाणगंगा, बनेर, गज, अवा, मनूणी व चक्की आदि इसकी प्रसिद्ध सहायक खड्डे हैं।
- पार्वती नदी: ब्यास के सहायक नदी-नालों में पार्वती सबसे बड़ी नदी है। इसके किनारों पर जरी, करोल, मणिकर्ण, रुद्रनाग, खीरगंगा आदि धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक स्थल स्थित है। ‘मानतलाई’ इसका स्रोत है। ‘डिबी-रा-नाला’ और ‘तोश नाला ‘इसके सहायक नाले हैं। पार्वती (भुंतर/ शमशी में इसमें मिलती है) ।
- सर्वरी कुल्लू नगर के पास इसमें मिलती है ।
- सैंज नदी (सुपकानी चोटी से निकलकर) व तीर्थन, लारजी में ब्यास में मिलती है।
- हारला नदी भुंतर में ब्यास में मिलती है।
- ऊहल पण्डोह और मण्डी नगर के बीच चौहार घाटी में से उत्तर की ओर से ब्यास में मिलती है।
- सुकेती खड्ड मंडी नगर में, बाखली खड्ड और ज्यूणी खड्ड पंडोह में ब्यास में मिलती है।
- बेकर खड्ड संधोल के पास ब्यास में मिलती है।
- कुणाह खड्ड हमीरपुर जनपद की बारह मासी खड्ड है। इस खड्ड का उद्गम स्थल टौणी देवी है। यह नदौन से पहले ब्यास नदी में मिलती है।
- मान खड्ड का उद्गम स्थल बड़सर है। यह भी नादौन के समीप ब्यास नदी में मिलती है। मान खड्ड किनारे स्थित कई एतिहासिक धार्मिक स्थल हैं, जिनमें प्रमुख हैं- नदौन का ऐतिहासिक गुरूद्वारा, साईं फजलशाह की मजार तथा लवणेश्वर महादेव का मंदिर
- चक्की पठानकोट के पास ब्यास में मिलती है तथा गज पोंग झील के पास।
Some Important Point about Beas River
- देहरा गोपीपुर – इसका सम्बन्ध बाबा काशीराम से है इन्हे पहाड़ी बुलबुल- सरोजनी नायडू ने और पहाड़ी गाँधी- पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा।
- इस नदी का नाम महर्षि ब्यास जी के नाम पर पड़ा है।
- त्रिवेणी नामक स्थान पर ब्यास और बिनवा नदी का संगम होता है।
- मंडी ज़िले के पंडोह के सलापड़ नामक स्थान में सुरंग के माध्यम से ब्यास और सतलुज दोनों का पानी मिलाया जाता है।
- दुशैहर सरोवर से आता ‘राहणी नाला’ ब्यास नदी का पहला सहायक नाला है।
- काँगड़ा ज़िले में ब्यास नदी पर पोंग बांध बनाया गया है।
- ब्यास नदी के ऊपरी भाग को ‘ऊझी‘ कहते हैं और यहाँ के रहने वालों को ‘झेचा‘ कहा जाता है।
- यह नदी धौलाधार की लारजी में काटती है।
रावी नदी (RAVI RIVER)
- उद्गम स्थान : यह नदी काँगड़ा में धौलाधार पर्वत श्रृंखला के बड़ा भंगाल क्षेत्र के भादल और तंतगिरि नामक दो हिमखंडों के संयुक्त होने से गहरी खड्ड के रूप में निकलती है।
- संस्कृत नाम : ईरावती, जिसे स्थानी बोली में ‘रौती’ भी कहते हैं।।
- वैदिक नाम : पुरुशिनी।
- ग्रीक नाम : हाइड्रेट्स या हाइड्रास्टर।
- प्रवेश : रावी नदी चम्बा के खैरी स्थान से हिमाचल प्रदेश से निकलकर जम्मू- कश्मीर में प्रवेश करती है।
- हिमाचल में लम्बाई : कुल लम्बाई – 720 किमी, हिमाचल में लम्बाई- 158 किमी।
- हिमाचल में जलग्रहण क्षेत्र : कुल जलग्रहण क्षेत्र – 14442 वर्ग किमी हिमाचल में जलग्रहण क्षेत्र – 5451 वर्ग किमी।
- इसके किनारे पे प्रमुख बस्तियाँ : चम्बा, भरमौर
रावी की सहायक नदियाँ (Tributaries)
- इसकी सहायक नदियां / खड्डे, चिड़चंड, छतराड़ी, बोढिल, टुण्हण, बलजेड़ी, कीड़ी खड्ड, होल खड्ड, सनवाल खड्ड, शक्ति खड्ड, साल और स्थूल आदि हैं।
- बुड्डल खड्ड : भरमौर से ‘कुगती खड्ड’ तथा कैलाश पर्वत की हिमगिरियों से ‘मणिमहेश खड्ड‘ प्रवाहित होती है। इन दोनों खड्डों का हड्सर नामक स्थान पर संगम होता है तथा उसके आगे यह जलधारा ‘बुड्डल खड्ड’ के नाम से जानी जाती है। खड़ामुख नामक स्थान पर बुड्डल खड्ड रावी नदी में मिलती है।
- ‘ओबड़ी खड्ड‘ सुलतानपुरा के समीप रावी में विलय होती है। ‘मंगला खड्ड‘, यह चंबा में शीतला पुल के समीप रावी नदी में मिल जाती है।
- स्यूल नदी : उतरी भारत में केवल दो ही नदियां हैं जो कि पश्चिम हिमालय से निकलकर पूर्व दिशा में प्रवाहित होती हैं, गंगा तथा दूसरी स्यूल नदी। इन दोनों नदियों की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि इन नदियों के जल में कई-कई सालों तक सड़न पैदा नहीं होती है। लोअर चुराह के ‘चौहड़ा’ नामक स्थान पर स्थूल नदी और रावी नदी का परस्पर संगम होता है। चुराह के परगना हिमगिरी के छेत्री गांव के समीप ‘बैरा खड्ड’ और स्यूल नदी का संगम होता है।
Some Important Point about Ravi River
- रावी नदी की मूल धारा, बड़ा भंगाल से निकल कर अपने में कई छोटी बड़ी जल धाराओं को समेटती हुई, लोअर चुराह के चौहड़ा नामक स्थान पर विशाल नदी का रूप धारण करती है।
- रावी नदी कांगड़ा और चम्बा ज़िलों में बहती है।
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